महाभारत का युद्ध का स्थल

 कुरु प्रदेश का सर्वप्रथम  उल्लेख कुरु प्रदेश के रूप में न होकर ऋग्वेद में कर्म निष्ठा लोगो की कर्मभूमि के रूप में कुछ इस तरह हुआ है! इसके बाद पंचविश ब्राह्मण ने प्रदेश को ब्रह्मा वेदी के नाम से संज्ञा दी !इसके बाद शतपथ ब्राह्मण तथा एेतरेय ब्राह्मण आदि ग्रंथों  मे इस प्रदेश को कुरु प्रदेश के नाम से जाना जाने लगा! एक समय सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के बीच के प्रदेश में कृषि को उन्मत्त करने में महाराज कुरु के प्रयतन अत्यंत सराहनीय रहे हैं! जहॉ महाराज कुरु ने इस प्रदेश को धर्म क्षेत्र के नाम की संज्ञा दिलवाई, वहां महाराज कुरु के पूर्वजों ने भी इस प्रदेश को देवलोक कहलाने का काम संपन्न किया था! उनके पूर्वजों ने सर्वप्रथम मनु का नाम आता है!                                                                                   
   ब्रह्मा तथा महाराजा पृथु के नाम पर  पृथूदक  नामक तीरथ का निर्माण हुआ ! महाभारत तथा वामन पुराण के अनुसार महाभारत युद्ध क्षेत्र की सीमा में चार यक्षोंके बीच इस धरती को युद्ध स्थल माना गया है! पहला यक्ष कपिल यक्ष था , जो जींद नगर के 4 मील पश्चिम में स्थित है !अब इसे राम हृदय तीरथ कहते हैं !इस स्थान पर चार सरोवर है ,जो महा ऋषि परशुराम की कीर्ति गाथा से जुड़े हुए हैं! दूसरा यक्ष तरनतुक   यक्ष है ,जो हाट गांव से 4 मील  पूर्व में  त्रिखु नामक गांव में स्थित है!  यह दोनों यक्ष अथवा द्वारपाल दृष्ट द टी चोतंग नदी के तट पर महाभारत तथा वामन पुराण में बताए गए हैं!                                                                                                                                                                   
   इसी तरह सरस्वती नदी के साथ दो यक्ष का उल्लेख हुआ है, उनमें पहला यक्ष अरनतुक पीपली (कुरुक्षेत्र) के निकट रतगल गांव में स्थित है!इसको बहर यक्ष कहां जाता है! इन सभी स्थानों पर सीमावर्ती क्षेत्रों में चित्रित सलेटी कुंभ कला के अवशेष भारी मात्रा में प्राप्त हुए थे!  पुरातत्व वेताओं  ने इस कुंभ कला  को आर्यों की कृति कहां हैे!

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