पैसों का युग

 यह योग एक प्रकार से पैसों का युग है! चार और धन की ही पुकार मची हुई है!  फिर भी किसी गरीब लेखक तथा विद्वान व्यक्ति का  करोड़पतियों से अधिक  आदर होता है! धन हमेशा ही बुरी आदतों को प्रोत्साहित करता है ! धन - लोलुप व्यक्ति की सफलता हजारों को दुख और विषाद में डाल सकती है! बुद्धि की दुनिया में सफलता के समाज की उन्नति में सहायता मिलती है! धनी धन के घमंड में अपना चरित्र खो बैठता है और धन हीन उसे ही अपना सब कुछ समझ कर अपनाता है !चरित्रवान पुरुष चरित्र को ईश्वर का एक आदेश मानता है और धन -संचय या लाभ -हानि की चिंता किए बिना निस्वार्थ भाव से अपने कार्य करता है ! 

संसार में विजय पाने के लिए चरित्र बड़ा मूल्यवान साधन होता  है! चरित्र के मार्ग पर चलने वाला आदमी ही सच्चे अर्थों में महान होता है! संसार में जिसका देवता सुवर्ण होता है उसका ह्रदय प्राय: पत्थर का हो जाता है! उसे दूसरों के आंसू पूछने में विश्वास नहीं होता! वह दूसरों को मिटाकर बनता है, दूसरों के घर गिरा कर अपना घर बनाता है, उसकी नस -नस में लो भरा होता है  संसार में ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता है जो स्वार्थ के लिए नहीं परमार्थ के लिए जीवित रहते हैं! जोधन के लिए स्वाभिमान नहीं बेचते ! जिनकी अंतरात्मा एक दिशा  सूचक को यंत्र की सुई के समान 10 नक्षत्र की ओर ही देखा करती है! जो अपने समय, शक्ति और जीवन को दूसरों के लिए देश, जाति और समाज के लिए अर्पित कर देते हैं! ऐसे ही व्यक्तियों का चरित्र महान होता है!

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