माँ
मां कोई चित्र नहीं मां एक रूप है।
मां एक स्वरूप नहीं, ईश्वर का प्रतिबिंब है।
मां पहली स्वास है मां ही पहला रोदन
मां की पहली खुशी पहचान भी वही है।
मां ही पहली मुस्कान दर्द भी वही है।
मां ही पहला पग ,सिख भी वही है
मां ही पहला शब्द दर्द का एहसास वही है।
मां वक़्त का पहला आइना प्रतिबिंब भी वही है।
मां से आरंभ मां से ही अंत है
मां ईश्वर का वरदान है।
मां आनंद मां महान है।
मां ना होती तो सब व्यर्थ है।
मां हमारी पहचान मां ही सम्मान है।
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