"अत्यधिक चिंता और घबराहट को कैसे रोकें?" (How to Stop Excessive Worrying and Anxiety )

"मन के बंधन"

(The Shackles of the Mind)

भूमिका:

सुमन एक 27 वर्षीय शिक्षिका थी। पढ़ाई में होशियार, व्यवहार में विनम्र और सबकी चहेती। लेकिन उसके भीतर एक ऐसी लड़ाई चल रही थी, जिसे कोई नहीं देख सकता था — अत्यधिक चिंता और घबराहट

हर सुबह वह नींद से डर के साथ उठती। उसे लगता कि कुछ गलत हो जाएगा — स्कूल में कोई गलती हो जाएगी, माता-पिता नाराज़ हो जाएंगे, दोस्त दूर हो जाएंगे। हर छोटी बात उसके लिए बड़ी समस्या बन जाती थी।


दैनिक संघर्ष:

उसका दिन एक रूटीन में चलता — अलार्म बजता, दिल की धड़कन तेज़ होती, पेट में मरोड़, और दिमाग में आवाजें:
“तू कर पाएगी क्या?”
“अगर बच्चों ने सवाल पूछ लिया तो?”
“अगर प्रिंसिपल ने क्लास चेक कर ली तो?”

उसके चेहरे पर मुस्कान थी, पर मन में तूफ़ान। चिंता उसकी सबसे बड़ी साथी बन चुकी थी। रात में वह घंटों जागती रहती — भविष्य की कल्पनाओं में उलझी हुई, जो शायद कभी हों ही नहीं।


टूटने का क्षण:

एक दिन स्कूल में पढ़ाते समय उसे घबराहट का दौरा पड़ गया। हाथ कांपने लगे, आवाज़ रुकने लगी और सांसें तेज़ हो गईं। वह क्लास से बाहर चली गई और स्टाफ रूम में चुपचाप रोने लगी।

वहीं एक सीनियर टीचर, मिस शालिनी, ने उसे देखा और उसके पास बैठ गईं।

शालिनी मैम: "सुमन, क्या बात है? कुछ तो है जो तुम भीतर छुपा रही हो।"

सुमन फूट-फूटकर रो पड़ी। उसने सबकुछ बता दिया — उसकी चिंता, रातों की नींद, दिल की धड़कन, और डर। शालिनी ने उसका हाथ पकड़ा और कहा:

“बेटा, चिंता से कोई समस्या हल नहीं होती, उल्टा हम और उलझ जाते हैं। लेकिन चिंता को समझा जा सकता है। चलो, इसे समझने की कोशिश करते हैं।”



परिवर्तन की शुरुआत:

अगले दिन से सुमन ने कुछ छोटे-छोटे कदम उठाने शुरू किए — जैसा शालिनी मैम ने कहा था:

1. "अब" में जीना सीखा (Mindfulness Practice):

शालिनी ने उसे सिखाया कि चिंता हमेशा भविष्य की कल्पना होती है।
सुमन ने रोज़ सुबह 10 मिनट आँखें बंद करके बस अपनी साँसों पर ध्यान देना शुरू किया।
हर बार जब उसका मन भटकता, वह खुद से कहती:

"मैं अभी यहाँ हूँ, और यह पल सुरक्षित है।"

2. "सोच को चुनौती देना" सीखा (Cognitive Restructuring):

जब भी उसके मन में डर आता — जैसे "मैं कुछ गलत कर दूँगी", वह उसे लिखती और सामने से देखती:

“क्या सबूत है कि ये सच है?”
“पिछली बार क्या हुआ था?”
“अगर ऐसा हुआ तो मैं उससे कैसे निपट सकती हूँ?”

धीरे-धीरे उसने अपनी नकारात्मक सोच की पकड़ को ढीला करना शुरू किया।

3. "To-Do List नहीं, Be-Do List" बनाई:

वह हर दिन अपने लक्ष्य सिर्फ कामों में नहीं, बल्कि भावनाओं में भी लिखती।
जैसे:

  • “आज मैं खुद पर भरोसा करूँगी।”

  • “आज मैं हर परिस्थिति में शांत रहूँगी।”

  • “आज अगर डर आया, तो उसे समझकर साँस लूँगी।”

4. "सेल्फ-टॉक" बदलना सीखा:

पहले वह खुद से कहती थी:

“तू कमजोर है…तू डरपोक है।”
अब वह खुद से कहती:
“मैं बस इंसान हूँ, और इंसान डरता है। लेकिन मैं सीख रही हूँ।”
“मैं अपनी चिंता से बड़ी हूँ।”


धीरे-धीरे सुमन बदलने लगी:

  • उसकी नींद सुधरने लगी।

  • दिल की धड़कन अब पहले जैसी तेज़ नहीं होती थी।

  • क्लास में वह खुलकर पढ़ाने लगी, और बच्चों से जुड़ने लगी।

एक दिन उसकी छात्रा ने आकर कहा:

“मैम, आपकी मुस्कान अब असली लगती है।”

सुमन को जैसे कोई आईना दिखा गया।


कहानी का अंत, और एक नई शुरुआत:

6 महीने बाद, सुमन ने अपने अनुभव को अपने स्कूल में एक कार्यशाला में साझा किया:

"चिंता हम सबके जीवन में आती है। यह संकेत देती है कि हमें कुछ देखने की जरूरत है।
लेकिन अगर हम उसे ही सच्चाई मान लें, तो हम डर में जीने लगते हैं।
आज मैं डरती नहीं, मैं समझती हूँ।
और यही समझ मेरी ताकत बन गई है।”


सीख (Moral):

  • चिंता को झूठा दोस्त मत समझो। वह तुम्हें कुछ दिखाने आई है।

  • डर से भागो मत, उससे संवाद करो।

  • साँस लो, ठहरो, और खुद से कहो — "मैं अब यहाँ हूँ, और मैं ठीक हूँ।"


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