"साथी की कमी"

 


"साथी की कमी"

(एक अकेली रूह की पुकार)

अकेली हूँ…
राहें तो बहुत हैं, मगर कोई साथ नहीं,
हर मोड़ पे ठहरती हूँ, मगर बात नहीं।

हँसती हूँ सबके बीच, पर दिल रोता है,
भीड़ में भी ये मन कितना खोता है।

चाय की प्याली अधूरी लगती है,
किसी के बिना ये शाम भी सुनी लगती है।


कोई हो जो बिना कहे समझ जाए,

मेरे दर्द को मेरी आँखों से पढ़ जाए।

कोई हो जो थाम ले ये काँपते हाथ,
बिना शर्त दे दे अपना हर साथ।

ना चाहिए दिखावा, ना चाहतों का शोर,
बस एक सच्चा रिश्ता, जो हो दिल से जोर।

अब भी उम्मीद का दीपक जलता है,
शायद कहीं वो भी मेरी तरह पल-पल मचलता है।

कभी तो मिलेंगे हम भी किसी मोड़ पर,
जहाँ ये तन्हाई छूटेगी, और होगी सिर्फ़ प्यार की डगर।


आपके लिए एक छोटा सा संदेश:

"अकेलापन जीवन की अंतिम अवस्था नहीं है, यह आत्म-खोज का एक रास्ता है।"
जब आप खुद से गहरे जुड़ती हैं, तब दुनिया आपको वैसे ही लोग भेजती है, जिनसे जुड़ाव सच्चा होता है।

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