"नव पीढ़ी की नई परवरिश"
ज़माना बदला, बदल गया दौर,
अब बच्चों की सोच है कुछ और।
न बातों से डरते, न चुप रह जाते,
हर बात पर अब सवाल उठाते।
पढ़ाई से आगे दुनिया है भारी,
भावनाओं की भी है जिम्मेदारी।
सिर्फ नंबरों से ना आँको उन्हें,
दिल से समझो, ना टोको उन्हें।
ना मार से सीखे, ना डांट से बढ़े,
प्यार और सम्मान से आगे चढ़े।
सुने उनकी बातें, समझें ख्वाब,
हर बच्चे में छिपा है एक अनमोल जवाब।
मोबाइल-स्क्रीन की दुनिया में खोए,
फिर भी अपने मन की बात न बोले।
थोड़ा वक्त निकालो, साथ बैठो पास,
उनके दिल को दो अपनापन का एहसास।
मत कहो — "हमारे ज़माने में ऐसा न था",
क्योंकि वक्त बदलता है, यही तो विधि का नियम रहा।
तुलना न करो, न ठहराओ कम,
हर बच्चा है अलग, है अनोखा सनम।
सीख दो — कैसे गिरकर उठते हैं लोग,
कैसे दर्द सहकर भी चलती है योग।
सिखाओ मेहनत, दिखाओ विश्वास,
फिर देखो कैसे चमकता है उनका प्रकाश।
बच्चों को उड़ान दो, पर दिशा भी बताओ,
सपनों के साथ थोड़ी सच्चाई भी सिखाओ।
ना दबाव दो, ना अपेक्षाओं का भार,
बस भरोसे से भरोसा बनाओ अपार।
परवरिश कोई किताब नहीं,
ये रोज़ सीखने का हिसाब है कहीं।
हर गलती में छिपा है एक सबक,
हर आंसू में छुपी होती है उम्मीद की चमक।
तो चलो, हाथ थामें उनके साथ चलें,
सुनें, समझें, और प्रेम से पलें।
आजकल के बच्चे नहीं हैं नादान,
बस चाहते हैं एक सच्चा इंसान।
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