खुद को प्राथमिकता दो! | खुद को चुनना सीखो – खुशहाल जीवन की शुरुआत यहीं से होती है!”


 

यह विषय आत्म-प्रेम, आत्म-सम्मान और मानसिक मजबूती की गहराई से जुड़ा है।


खुद को चुनना सीखो – खुशहाल जीवन की शुरुआत यहीं से होती है!

"जब हम खुद को चुनते हैं, तब ही हमें दुनिया समझने लगती है।"

रीमा एक साधारण सी लड़की थी — दूसरों के लिए कुछ भी कर देने वाली, हमेशा 'ना' को 'हां' में बदलने वाली। घर हो या ऑफिस, दोस्त हो या रिश्तेदार — सभी की उम्मीदों पर खरा उतरने की उसकी कोशिश कभी खत्म नहीं होती थी। पर इन सबके बीच रीमा धीरे-धीरे खुद को खोती जा रही थी।

एक दिन, ऑफिस से थकी हारी लौटते हुए उसने आईने में खुद को देखा और पहली बार सवाल पूछा:
“तू खुश क्यों नहीं है?”

उस एक सवाल ने उसकी ज़िंदगी बदल दी।


खुद को चुनने का मतलब क्या है?

खुद को चुनने का मतलब सिर्फ "स्वार्थी" होना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि आपका अस्तित्व भी मूल्यवान है।
जब हम बार-बार खुद को दूसरों के पीछे रखते हैं, तो हम अपने आत्म-सम्मान और मानसिक स्वास्थ्य की कीमत चुकाते हैं।


क्यों जरूरी है खुद को प्राथमिकता देना?

  1. आपका समय सीमित है — हर दिन, हर पल कीमती है। इसे केवल दूसरों को खुश करने में ना गँवाएँ।

  2. खुश इंसान ही दूसरों को खुश रख सकता है — जब आप अंदर से संतुलित होंगे, तभी अपने संबंधों में भी प्यार और सामंजस्य ला सकेंगे।

  3. स्वस्थ सीमाएं बनती हैं — खुद को चुनना मतलब "No" कहना सीखना भी है, जब ज़रूरी हो।

खुद को चुनने की शुरुआत कैसे करें?

अपने आप से जुड़ना सीखें

हर दिन कुछ समय सिर्फ अपने लिए निकालिए।
डायरी लिखें
 ध्यान करें
 टहलने जाएं — बिना किसी उद्देश्य के, बस खुद से मिलने

'ना' कहना सीखें

रीमा की सबसे बड़ी दिक्कत यही थी — वो हर किसी को खुश रखने की कोशिश में, खुद को लगातार थका रही थी।
अब उसने सीखा —

"ना" कहना आत्म-सम्मान का संकेत है, असभ्यता का नहीं।

 अपने मन की सुनो

दूसरे क्या कहेंगे से ज़्यादा ज़रूरी है — आप क्या सोचते हैं?
एक छोटी सी प्रार्थना रोज़ खुद से करें:

“आज मैं खुद के साथ सच्चा रहूंगी।”


छोटे बदलाव, बड़ा असर

आदत     खुद को चुनने वाला विकल्प
हर बात में हां कहना                                                सोचकर, ज़रूरत हो तो ही हां कहना
दूसरों की खुशी के लिए सहमत होनाअपने दिल की सुनना
खुद की तुलना करनाअपनी प्रगति मापना

कहानी से प्रेरणा    रीमा की बदलाव यात्रा

रीमा ने कुछ आसान कदम लिए:

  1. हर सुबह आईने में खुद से कहना: “मैं खुद को स्वीकार करती हूँ।”

  2. हर हफ्ते एक ऐसा काम करना जो उसे खुशी दे — जैसे पेंटिंग, बुक्स, या अकेले कैफे जाना

  3. सोशल मीडिया डिटॉक्स — comparison से मुक्ति

  4. अपने भीतर की बच्ची से संवाद करना — जो प्यार, अपनापन और सुरक्षा चाहती थी

कुछ ही महीनों में, रीमा पहले से अधिक शांत, संतुलित और खुश नज़र आने लगी।
उसकी आंखों में अब वो चमक थी जो खुद को पाने के बाद आती है।


खुद से पूछने वाले 5 सवाल

  1. क्या आज मैंने खुद के लिए कुछ किया?

  2. क्या जो काम मैं कर रही हूँ, वो मेरी खुशी के लिए है?

  3. क्या मैं अपनी सीमाओं का सम्मान कर रही हूँ?

  4. क्या मैं खुद को माफ़ कर पा रही हूँ?

  5. क्या मैं खुद से प्यार करती हूँ?

खुद को चुनना आत्म-प्रेम है, घमंड नहीं

जब कोई स्त्री या पुरुष खुद को चुनता है,
वो कहता है — "मुझे भी हक है खुशी का, संतुलन का और सम्मान का।"
ऐसा करने पर दुनिया नहीं गिरती, बल्कि आपके अंदर एक नई दुनिया खड़ी होती है।


 अब वक्त है – खुद को चुनने का

खुद को प्राथमिकता देना पहली बार में मुश्किल लगता है,
पर जब आप खुद को चुनते हैं — आप अपने जीवन के साथ न्याय करते हैं।

याद रखें

"अगर आप खुद को नहीं चुनोगे, तो दुनिया भी आपको नज़रअंदाज़ करेगी।"


🖊️ लेखक: हिमानी भारद्वाज

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