किसी भी स्थिति में अपनी भावनाओं को कैसे नियंत्रित करें


किसी भी स्थिति में अपनी भावनाओं को कैसे नियंत्रित करें?

 "भावनाएं हमें इंसान बनाती हैं, पर जब वे हमें काबू में कर लें — तब ज़रूरत होती है स्वयं पर नियंत्रण की।"

रीता, एक शिक्षिका, जो क्लास में बहुत प्यारी और शांत मानी जाती थी, लेकिन घर पर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा कर बैठती। एक दिन उसकी बेटी ने कहा,
"मम्मी, स्कूल में सब आपको पसंद करते हैं… पर आप घर में क्यों जल्दी नाराज़ हो जाती हैं?"

ये सवाल रीता के दिल में गूंजता रहा। क्या वो भावनाओं को केवल बाहर ही नियंत्रित करती थी?
क्या वो "असली संतुलन" खो चुकी थी?



भावनाएं क्या हैं और क्यों भड़कती हैं?

भावनाएं हमारे विचारों, अनुभवों और शरीर के बीच होने वाली प्रतिक्रियाएं हैं। जब कोई स्थिति हमारे नियंत्रण से बाहर जाती है, या हमारे मूल्य (values) पर चोट करती है, तो भावनाएं जैसे – गुस्सा, डर, दुख, जलन, या बेचैनी सक्रिय हो जाती हैं।

लेकिन असली समझदारी यह है कि:

भावनाएं हमें कंट्रोल न करें, हम उन्हें करें।


क्यों जरूरी है भावनात्मक नियंत्रण?

  1. संबंधों की रक्षा के लिए – गुस्से या कटु शब्दों से रिश्ते बिगड़ सकते हैं

  2. स्वास्थ्य के लिए – असंतुलन तनाव, हाई BP, थकान, नींद की कमी जैसी समस्याएं पैदा करता है

  3. निर्णय लेने की क्षमता के लिए – जब आप शांत होते हैं, तब ही सही निर्णय ले पाते हैं

  4. स्व-विकास के लिए – जो व्यक्ति खुद पर नियंत्रण रखता है, वही जीवन में ऊँचाइयाँ छूता है


भावनाओं को नियंत्रित करने के 7 प्रभावशाली तरीके

 भावना को पहचानें — “मैं क्या महसूस कर रही हूँ?”

पहला कदम है भावनाओं को नाम देना।
 जैसे: "मैं चिढ़ रही हूँ", "मुझे अपमान महसूस हो रहा है", "मैं डर रही हूँ"
नाम लेने से मस्तिष्क को संकेत मिलता है कि वह स्थिति को समझे — न कि केवल प्रतिक्रिया दे।


5 सेकंड का विराम लें (Pause Method)

जब भी कोई भावना तीव्र हो, बस 5 सेकंड का विराम लें।
गहराई से साँस लें — 3 सेकंड अंदर, 3 सेकंड बाहर।
यह आपके दिमाग को लड़ने-भागने की प्रतिक्रिया से बाहर निकालता है।


सोच और भावना को अलग करें

जैसे:

  • भावना: "मुझे बुरा लगा कि उसने जवाब नहीं दिया"

  • सोच: "शायद वह व्यस्त था या परेशान था"

अगर आप सोच को लचीला रखते हैं, तो भावना भी संतुलित हो जाती है।

 Mindfulness अभ्यास करें

Mindfulness यानी — “वर्तमान में रहना, बिना जज किए।”
हर दिन 10 मिनट आँखें बंद करके ध्यान करें:
"मैं यह सोच महसूस कर रही हूँ... लेकिन मैं वह सोच नहीं हूँ।"
इससे भावनाएं बहेंगी, लेकिन आप उनसे बहेंगे नहीं।


 व्यक्त करें — लेकिन सही तरीके से

भावना को दबाना ठीक नहीं, लेकिन फूट पड़ना भी नहीं।
बात करें, लिखें, कला में निकालें, वॉक पर जाएँ, किसी विश्वासपात्र से बात करें।

"बोलना जरूरी है, पर कैसे और कब बोलें — ये जानना और ज़रूरी है।"


दृष्टिकोण बदलें (Reframe Technique)

स्थिति नहीं बदल सकती? तो उसका देखने का तरीका बदलिए।

उदाहरण:

“वह मुझे अपमानित कर रहा है”
“शायद उसे खुद की समस्याओं का सामना करना कठिन हो रहा है”

इससे आप पीड़ित नहीं बल्कि परिपक्व प्रतिक्रिया देने वाले बनते हैं।


खुद से करुणा रखें (Self-compassion)

"मैं इंसान हूँ, मुझे भी गुस्सा आ सकता है, डर लग सकता है।"
"पर मैं हर बार बेहतर बनने की कोशिश कर सकती हूँ।"

खुद से बात करें जैसे आप अपने सबसे अच्छे दोस्त से करते।


रीता की वापसी: एक बदलाव की शुरुआत

रीता ने अपनी बेटी की बात के बाद निर्णय लिया —
हर दिन सुबह 10 मिनट ध्यान करेगी
हर बार गुस्सा आने पर 5 सेकंड रुकेगी
हर हफ्ते अपनी भावनाओं को डायरी में लिखेगी

तीन महीने में ही उसने खुद को शांत और सशक्त पाया।
अब वह घर में भी वही संतुलन लेकर आई जो स्कूल में था।


आप खुद से ये 5 सवाल पूछें

  1. क्या मैं भावना के प्रभाव में हूँ या समझदारी से सोच रही हूँ?

  2. क्या मेरी प्रतिक्रिया परिस्थिति के अनुसार है?

  3. क्या मैं किसी और को दोष देकर बच रही हूँ?

  4. क्या यह भावना बार-बार आती है? क्यों?

    "मुझे क्या चाहिए?"

 भावनाओं पर नियंत्रण, शक्ति की पहचान है

आप रोबोट नहीं हैं। भावनाएं होंगी ही।
पर जब आप उन्हें पहचानते, समझते और स्वीकार करते हैं — तब आप उनके गुलाम नहीं, मालिक बनते हैं।

"भावनाओं को दबाओ नहीं — समझो।
उन्हें बहने दो — पर दिशा तुम तय करो।"


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 लेखक  हिमानी भारद्वाज


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