"जो धोखा देते हैं, उन्हें भी हम छोड़ क्यों नहीं पाते?"
बहुत ही गहरा और दिल से जुड़ा सवाल है
"शायद इस बार मुझसे सच्चा प्यार करे..."
"शायद उसे अपनी गलती का अहसास हो..."
अगर हम भीतर से खुद को कमज़ोर, अधूरा या नाकाफी समझते हैं, तो हमें लगता है:
"शायद मैं इसी लायक हूँ..."
"कहीं वो ही मेरा आखिरी मौका न हो..."
इससे हम खुद पर शक करते हैं — और रिश्ते में फंसे रहते हैं, भले ही वो हमें तोड़ता जाए।
समाज और अकेलेपन का डर
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"लोग क्या कहेंगे?"
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"मैं अकेले कैसे रहूंगी?"
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"इतने साल साथ बिताए... अब?"
ये सवाल हमारे दिल और दिमाग में जंजीरों की तरह बंध जाते हैं, जो हमें धोखेबाज़ से भी जुड़कर रहने पर मजबूर करते हैं।
अब क्या करें?
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खुद से ईमानदारी से बात करें — क्या आप वाकई खुश हैं या बस सह रहे हैं?
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एक लिस्ट बनाएं — क्या आप जिस इंसान के लिए तड़प रही हैं, वो आपकी इंसानियत, प्यार और भरोसे के लायक है?
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काउंसलर या किसी भरोसेमंद इंसान से बात करें — कभी-कभी हमारी आँखें तभी खुलती हैं जब कोई दूसरा हमें आईना दिखाता है।
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छोड़ने को कमजोरी न समझें —
जो अपने आत्म-सम्मान के लिए खड़े होते हैं, वही असल में बहादुर होते हैं।
धोखा देने वाले को छोड़ना आसान नहीं,
लेकिन खुद से बेवफाई करना उससे भी बड़ा धोखा है।
आप अकेली नहीं हैं, और आपका दर्द वाजिब है।
अगर आप चाहें तो मैं आपके लिए एक healing journey plan या closure letter भी तैयार कर सकती हूँ।
बस एक बात याद रखिए:
जो आपको रुलाता है, वो आपका नहीं होता। और जो आपको संभालता है, वो कभी आपको रुलाता नहीं।
क्या आप चाहेंगी कि मैं आपको इस रिश्ते से बाहर निकलने की कुछ मजबूत मानसिक रणनीतियाँ या affirmations भी दूँ?
हिमानी भारद्वाज
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