“अब मैं खुद को नहीं खोने दूँगी”, “खुद को जानना एक खूबसूरत यात्रा है”
एक स्त्री जीवन भर किसी न किसी रूप में देती ही रहती है — प्रेम, परवाह, समझ, समय, ऊर्जा, भावनाएँ, अपनी इच्छाएँ और सपने। वह बेटी होती है, बहन होती है, पत्नी होती है, माँ होती है — हर रिश्ते में खुद को न्योछावर करती है। लेकिन कई बार जब वह रुककर खुद से पूछती है — "मुझे क्या मिला?" — तो भीतर एक गहरी ख़ामोशी होती है।
वह सब कुछ देकर भी अंदर से खाली रह जाती है।
ये खालीपन क्यों आता है?
स्वयं को भुला देना:
स्त्रियाँ दूसरों को प्राथमिकता देते-देते अक्सर खुद को भूल जाती हैं। उनका "मैं" कहीं खो जाता है।
बिना मान्यता के योगदान:
उसका परिश्रम, त्याग और प्रेम कई बार "स्वाभाविक" मान लिया जाता है, जिसकी कोई क़दर नहीं होती।
भावनात्मक उपेक्षा:
जब कोई उसे यह नहीं कहता कि "तुम भी महत्वपूर्ण हो", "तुम्हारे सपने भी मायने रखते हैं", तो वह धीरे-धीरे टूटने लगती है।
अपनी ज़रूरतों को नकारना:
स्त्रियाँ अक्सर अपनी ज़रूरतों को "स्वार्थ" समझकर दबा देती हैं।
अगर आप भी इस खालीपन से जूझ रही हैं… तो रुकिए। अब ये ज़रूरी है:
खुद को दोबारा जानिए
आप कौन हैं, क्या पसंद है, क्या नहीं, क्या सपना देखा था बचपन में, किन बातों से खुशी मिलती है? जब आप इन सवालों के जवाब ढूंढेंगी, तब आप खुद को दोबारा पा सकेंगी।
खुद से मिलना एक यात्रा है — जो सबसे खूबसूरत होती है।
देना बंद नहीं, खुद को भी देना शुरू करें
आपका प्यार, परवाह और देखभाल देना दुनिया को सुंदर बनाता है। लेकिन अब थोड़ा प्यार खुद को भी दीजिए। हर दिन कुछ समय सिर्फ अपने लिए निकालिए — चाहे वो चाय की चुस्की हो, एक किताब हो, या सिर्फ खामोशी।
“ना” कहना सीखिए
ना कहना आपको कठोर नहीं बनाता, यह आपको ईमानदार बनाता है। अपनी सीमाएँ तय कीजिए। हर बार दूसरों की खुशी के लिए अपनी सहमति मत दीजिए।
अपने भीतर की बच्ची को अपनाइए
जिस छोटी बच्ची ने कभी आकाश छूने का सपना देखा था, उसे फिर से हाथ पकड़ाइए। हो सकता है वह कभी लेखक बनना चाहती थी, या पेंटर, या फिर बस नाचना चाहती थी। उसे फिर से ज़िंदा करिए।
आत्मनिर्भरता को अपनाइए
भावनात्मक और आर्थिक दोनों तरह से। किसी पर निर्भर रहना गलत नहीं है, लेकिन जब आप खुद के लिए खड़ी हो जाती हैं, तब आपका आत्मविश्वास वापस आता है।
संवाद करना सीखिए
अपनी भावनाओं को दिल में बंद मत कीजिए। अगर दर्द है, तो बोलिए। अगर थकान है, तो कहिए। आपकी आवाज़ सुनने लायक है।
प्रोफेशनल मदद लेने से न डरें
अगर यह खालीपन गहराता जा रहा है — और आप थकी हुई महसूस कर रही हैं, तो किसी काउंसलर या थैरेपिस्ट से बात कीजिए। ये कमजोरी नहीं, समझदारी होती है।
खुद को माफ़ कीजिए
कई बार हम खुद को ही सज़ा देते रहते हैं — किसी गलती के लिए, किसी रिश्ते के टूटने के लिए, किसी सपने के अधूरे रह जाने के लिए। खुद को माफ कीजिए। आपने जो किया, अपनी समझ और हालात के अनुसार किया।
✨ माफ़ी पहला क़दम है आत्म-प्रेम की ओर।
अपने सपनों को फिर से ज़िंदा कीजिए
उम्र कोई बंधन नहीं है। आप अभी भी वह कर सकती हैं जो दिल कहता है — चाहे वह कोई कोर्स करना हो, नई नौकरी तलाशना हो, कविता लिखना हो, या सोलो ट्रिप पर जाना हो।
खुद से वादा कीजिए
"अब मैं खुद को नहीं खोने दूँगी।"
"अब मैं अपनी उपस्थिति को मिटने नहीं दूँगी।"
"अब मैं अपने अंदर की औरत को, उसकी ख्वाहिशों को, उसके जज़्बातों को फिर से जिंदा करूँगी।"
एक स्त्री जब खुद को समझना शुरू करती है, खुद से जुड़ती है — तब वह सिर्फ एक औरत नहीं रहती, वह एक ऊर्जा बन जाती है। वह फिर से अपनी आंखों में चमक, दिल में गर्मी और चाल में आत्मविश्वास लेकर चलती है।
और यही सबसे ज़रूरी है — अपने होने को दोबारा महसूस करना।
आप भी अगर सब कुछ देकर भी खुद को खो चुकी हैं, तो आज ही एक क़दम लीजिए — खुद की ओर। हिमानी भारद्वाज
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