गर्भ

       
   गर्भ में मैं आया।
 रिश्ता मां से पाया।
 पिता को अपनाया।
 धरती पर सांसआया।
 माता-पिता दादा-दादी।
 चाचा  चाची...........
 सबका बना चक्रव्यू पाया।
न था अकेला ,न था झमेला
 पर गर्भ में था मैं अकेला।
यहां का चक्रव्यू ना समझ पाया।
 दिनोंदिन बढ़ने लगा।
 सांसो का तार जलने लगा।
पर हर ओर से खुद को जकड़ा पाया।
 कोई विरोधी कोई अपना?
 कहीं झगड़ा कहीं सपना
 मैं क्या था?
 मैं क्यों था?
सब भूल अपनों में फसने लगा।
 जो गर्व से पहले या कहूं?
 गर्भ में था चाहा।
 सब दूर मुझसे झरने लगे।
इस चक्रव्यूह का भेदन ना पाया।
 कुछ भी समझ ना आया।
 क्यों कर खुद को जगाओ?
 अपनों को मांग ले आऊं।
 "अस्तित्व "अपना पाऊं।
 इस चक्रव्यूह को भेद जाऊ
  अनंत को पाऊं।
 सफल हो जाऊं।

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